जिले की रोगी कल्याण समिति, धांधली और भ्रष्टाचार का पर्याय बन गई है। सूत्रों से पता चला है कि समिति के पैसों का धुंआधार दुरूपयोग कर जेबें भरी जा रही हैं। पिछले १० साल में इस समिति में कितना पैसा आया और कितना, किस-किस काम में किसकी परमीशन से खर्च हुआ, इसका हिसाब किसी के पास नहीं है। सूत्रों से जानकारी मिली है कि फर्जी वर्क आर्डर निकालकर, फर्जी बिलों के जरिए रोगी कल्याण समिति का पैसा मिल बांटकर खाया जा रहा है। इस धांधली में उंगली सिविल सर्जन और सीएमएचओ के अलावा विक्टोरिया के दलालों व ठेकेदारों पर उठ रही हैं, जो कागजों में काम दर्शाकर फर्जी बिलों से राशि आहरित करते हैं। एप्रूवल एक काम का लिया जाता है और उसके बाद, उसी काम के नीचे, दो-चार नए काम जोड़कर खर्चा दर्शा दिया जाता है। इसी फर्जीवाड़े की वजह से रोगी कल्याण समिति एक तरह से बरबाद हो गई है। उसका खजाना खाली हो गया है।
>पुराने एसी में रंग-पेंट नए एसी का भुगतान
रोगी कल्याण समिति का पैसा रिपेयरिंग के नाम पर भी अंधाधुंध खर्च किया जाता है। अस्पताल के पुराने एसी-कूलरों को रंग पेंट मरम्मत कर लगा दिए जाता है और नए एसी-कूलर का बिल लगाकर भुगतान प्राप्त कर लिया जाता है।
>ईओडब्ल्यू ने दोषी पाया
राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) ने वर्ष २००८ में डॉ. मुरली अग्रवाल को म.प्र. शासन भंडार क्रय नियम-१४ के उल्लंघन का दोषी पाया। ईओडब्ल्यू ने धोखाधड़ी के मामले में अपनी जांच में पाया कि डॉ. मुरली अग्रवाल ने रोगी कल्याण समिति के माध्यम से एमपी ब्रदर्स भानतलैया की एक फर्म से पलंग, आलमारी व स्टूल की मरम्मत टुकड़ों में कराकर ८१ हजार ०७५ रूपए खर्च कर दिए जबकि नियम के मुताबिक उक्त कार्य कोटेशन जारी कर कराया जाना था। तत्कालीन एसपी ईओडब्ल्यू ने इस मामले में डॉ. मुरली अग्रवाल की विभागीय जांच की अनुशंसा की थी।
>सीनियर को छोड़, जूनियर कैसे बन गए सीएमएचओ
डॉ. मुरली अग्रवाल को सीएमएचओ का प्रभार कैसे मिल गया? इस पर जिले भर के सरकारी डॉक्टरों को घोर आश्चर्य है वैसे भी सीएमएचओ का पद शासन का नियमित पद है, जिस पर रेग्युलर सीएमएचओ पदस्थ होना चाहिए। इस पद के लिए कई सीनियर डॉक्टर लाइन में हैं। लेकिन उठापटक में माहिर डॉ. मुरली अग्रवाल को सीएमएचओ बना दिया गया। हांलाकि वे चार्ज में है लेकिन काम फुलफ्लैश सीएमएचओ का कर रहे हैं। खरीदी, सप्लाई, निर्माण में उनका पूरा दखल है जबकि प्रभार में रहने के मायने अस्थायी रूप से कामकाज देखने का रहता है।
>छत्तीसगढ़ तबादले के बाद डॉ. मुरली अग्रवाल की सीनियरिटी और घटी
डॉ. मुरली अग्रवाल का वर्ष २००२ में छत्तीसगढ़ तबादला हो गया था, उन्हें इसके लिए विक्टोरिया से कार्यमुक्त भी कर दिया गया था। 7 साल बाद उनका स्थानांतरण रद्द हुआ। इतने वर्ष तक वे म.प्र. के कर्मचारी ही नहीं रहे, जिससे म.प्र. सहित जबलपुर में उनकी सीनियरटी वैसे ही, स्थानीय सीनियर डॉक्टरों की तुलना में कम हो गई। इसके बाद भी उन्हें सीएमएचओ बना दिया गया। इस पद पर उनके लिए म.प्र. शासन ने भी कोई आदेश जारी नहीं किए हैं। पता तो ये भी चला है कि कलेक्टर से विधिवत एप्रूवल भी नहीं मिला है।
>कहां गया पैसा
जबलपुर जिले में विक्टोरिया अस्पताल के अलावा 14 डिसपेंसरी, स्वास्थ्य केन्द्र व अस्वास्थ्य केन्द्र हैं जहां मरीज से ५-५ रूपए की पर्ची कटवाई जाती है और यही पैसा रोगी कल्याण समिति के खाते में जमा होता है। करीब एक माह में न्यूनतम ८ से १० लाख रूपए रोगी कल्याण समिति में आता है लेकिन ये रकम फर्जी कार्यों में फर्जी तरीके से खर्च कर दी जाती है। सूत्रों से जानकारी मिली है कि इसके लिए बकायदा अधिकारी-कर्मचारी और ठेकेदारों की टीम है जो फर्जी वर्कआर्डर पर फर्जी बिल लगाकर चूना लगाती है।
साभार न्यूज़ ट्रैप
No comments:
Post a Comment