पश्चिम बंगाल के प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी ने जनसंहारों के इतिहास पर एक सिलेबस शुरू किया है, जिसमें जर्मनी में यहूदियों की सामूहिक हत्या पर स्टडी भी शामिल है। 20वीं सदी से अब तक के इतिहास के आधार पर इस सिलेबस को तैयार किया गया है। जनसंहारों के कारणों और इससे बच सकने के उपायों के बारे में बताया गया है।
सिलेबस के कोऑर्डिनेटर नवरस जाट आफरीदी के अनुसार, प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी एकमात्र ऐसा संस्थान है, जहां यहूदी जनसंहार (होलोकॉस्ट) पर कोई सिलेबस है। चीन और इजराइल के अलावा एशिया के किसी देश के यूनिवर्सिटी होलोकास्ट पर सिलेबस नहीं चलाते। इस सिलेबस का टाइटल ‘ए हिस्ट्री ऑफ मास वॉयलेंस : 20 सेंचुरी टू द प्रेजेंट’ रखा गया है और इतिहास से एमए करने वाले स्टूडेंट्स को थर्ड सेमेस्टर के दौरान पढ़ाई जाएगी।
इस सिलेबस में आर्मीनिया, बुरुंडी और पोलपोट जनसंहारों के अलावा इंडोनेशिया में 1965-1966 में हुए जनसंहार और बोस्निया-हर्जेगोविना के युद्ध को भी शामिल किया गया है।
भारत में हुए जनसंहार सिलेबस में नहीं
भारत में हुए जनसंहारों को इस सिलेबस में शामिल नहीं किया गया है। नवरस जाट आफरीदी कहते हैं कि ‘भारत में हुई सामूहिक हिंसा की घटनाओं पर चर्चा, भेदभाव और मनमुटावों को जन्म दे सकती थी। जैसे गुजरात के मुस्लिम विरोधी हिंसा पर बात होने पर, कुछ छात्र कश्मीर की हिंदू विरोधी हिंसा पर बात नहीं किए जाने की शिकायत ले खड़े हो सकते हैं। मैंने जानबूझकर भारत से संबंधित किसी भी सामूहिक हिंसा को सिलेबस में शामिल नहीं किया, क्योंकि ऐसा करने से छात्रों का निष्पक्ष बने रहना मुश्किल होता।‘ इस सिलेबस के पहले तक जनसंहार स्टडी पर आधारित कोई भी सिलेबस भारत में नहीं पढ़ाया जाता था।
सिलेबस के कोऑर्डिनेटर नवरस जाट आफरीदी के अनुसार, प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी एकमात्र ऐसा संस्थान है, जहां यहूदी जनसंहार (होलोकॉस्ट) पर कोई सिलेबस है। चीन और इजराइल के अलावा एशिया के किसी देश के यूनिवर्सिटी होलोकास्ट पर सिलेबस नहीं चलाते। इस सिलेबस का टाइटल ‘ए हिस्ट्री ऑफ मास वॉयलेंस : 20 सेंचुरी टू द प्रेजेंट’ रखा गया है और इतिहास से एमए करने वाले स्टूडेंट्स को थर्ड सेमेस्टर के दौरान पढ़ाई जाएगी।
इस सिलेबस में आर्मीनिया, बुरुंडी और पोलपोट जनसंहारों के अलावा इंडोनेशिया में 1965-1966 में हुए जनसंहार और बोस्निया-हर्जेगोविना के युद्ध को भी शामिल किया गया है।
भारत में हुए जनसंहार सिलेबस में नहीं
भारत में हुए जनसंहारों को इस सिलेबस में शामिल नहीं किया गया है। नवरस जाट आफरीदी कहते हैं कि ‘भारत में हुई सामूहिक हिंसा की घटनाओं पर चर्चा, भेदभाव और मनमुटावों को जन्म दे सकती थी। जैसे गुजरात के मुस्लिम विरोधी हिंसा पर बात होने पर, कुछ छात्र कश्मीर की हिंदू विरोधी हिंसा पर बात नहीं किए जाने की शिकायत ले खड़े हो सकते हैं। मैंने जानबूझकर भारत से संबंधित किसी भी सामूहिक हिंसा को सिलेबस में शामिल नहीं किया, क्योंकि ऐसा करने से छात्रों का निष्पक्ष बने रहना मुश्किल होता।‘ इस सिलेबस के पहले तक जनसंहार स्टडी पर आधारित कोई भी सिलेबस भारत में नहीं पढ़ाया जाता था।
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