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Sunday, 12 February 2017

नई दिल्ली। सु्प्रीम कोर्ट के अवमानना नोटिस पा चुके कोलकाता हाईकोर्ट के जज ने अजीब दलील दी है। सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि ऊंची जाति के जज अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के जज से मुक्ति चाहते हैं। उन्होंने कहा कि एक दलित जज को अवमानना नोटिस जारी करना अनैतिक है और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के खिलाफ है
जस्टिस करनन ने कहा है कि 'संविधान पीठ को हाईकोर्ट के कार्यरत जज के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना नोटिस जारी नहीं कर सकती। मेरा पक्ष सुने बिना मेरे खिलाफ ऐसा आदेश कैसे जारी किया जा सकता है। इससे जाहिर होता है कि पीठ मुझसे द्वेष भावना रखती है। अवमानना नोटिस जारी करने से मेरी समानता और प्रतिष्ठा का अधिकार प्रभावित हुआ है और साथ ही यह प्रिंसिपल ऑफ नेचुरल जस्टिस के भी खिलाफ है।'जस्टिस करनन ने यह भी कहा कि अवमानना की कार्रवाई संविधान की धारा 219 (जजों की शपथ) का भी उल्लंघन है। स्पष्ट है कि उच्च जाति के जजों ने एक दलित जज से छुटकारा पाने के लिए कानून हाथ में लिया है। कानूनन यह आदेश टिकने वाला नहीं। सीजेआई के रिटायरमेंट के बाद हो सुनवाई : जस्टिस कर्णन चाहते हैं कि इस मामले को मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर के रिटायरमेंट के बाद सुना जाए। यदि इसे अति आवश्यक माना गया है तो मामले को संसद भेजा जाना चाहिए।

जस्टिस करनन ने संविधान पीठ द्वारा अवमानना नोटिस जारी करने के फैसले को विचित्र बताते हुए कहा कि उनके मामले को जस्टिस खेहर न सुनें। उन्होंने कहा कि या तो उनके मामले को तत्काल संसद के पास भेज दिया जाए या जस्टिस खेहर के सेवानिवृत्त होने के बाद मामले की सुनवाई हो। जस्टिस करनन के इस पत्र के बाद सोमवार का दिन सुप्रीम कोर्ट में अहम होगा क्योंकि उसी दिन संविधान पीठ ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होकर अपनी सफाई देने के लिए कहा है।

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