आज की इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी चाहे हमें पूरे दिनभर लोगों की भीड़ के बीच व्यस्त रखती हो, लेकिन कहीं न कही हमारे भीतर एक शांति लगातार घर करती चली जाती है. क्योंकि हमारी दिनचर्या इतनी व्यस्त हो जाती है कि हमें अपने लिए समय नहीं मिल पाता है. दिनभर हमारे दिमाग में कुछ न कुछ चलता रहता है. जो एक दिन किसी मानसिक बीमारी का रूप ले सकती है जिसे डिप्रेशन कहा जाता है.
डिप्रेशन या दिमागी तकलीफ को लेकर एक गलत धारणा है कि ये सिर्फ उसे ही होती हैं, जिसकी जिंदगी में कोई बहुत बड़ा हादसा हुआ हो या जिसके पास दुखी होने की बड़ी वजहें हों. लोग अक्सर पूछते हैं, ''तुम्हें डिप्रेशन क्यों है? क्या कमी है तुम्हारी लाइफ में?'' यह पूरी तरह से गलत है. डिप्रेशन के दौरान इंसान के शरीर में खुशी देने वाले हॉर्मोन्स जैसे कि ऑक्सिटोसीन का बनना कम हो जाता है.
यही वजह है कि डिप्रेशन में आप चाहकर भी खुश नहीं रह पाते. आपने किसी ऐसे इंसान को देखा होगा, जो अपने आप से बातें करता रहता है या फिर कोई ऐसा जो हमेशा मरने की बातें करता है. हर छोटी-छोटी बात पर रो देता है. आप उन खुशमिजाज़ और मस्तमौला लोगों से भी मिले होंगे, जिनकी खुदकुशी की ख़बर पर आपको यकीन नहीं होता. ऐसे लोग डिप्रेशन या मानसिक परेशानी के शिकार होते है.
डिप्रेशन के लक्षण
-अगर आपको याद नहीं कि आप आखिरी बार खुश कब थे.
-बिस्तर से उठने या नहाने जैसी डेली रुटीन की चीजें भी आपको टास्क लगती हैं.
-आप लोगों से कटने लगे हैं.
-आप खुद से नफरत करते हैं और अपने आप को खत्म कर लेना चाहते हैं.
-अगर आप इन बातों के अलावा गूगल पर खुदकुशी के तरीके सर्च करते हैं तो आपको तुरंत मदद लेनी चाहिए.''
-बिस्तर से उठने या नहाने जैसी डेली रुटीन की चीजें भी आपको टास्क लगती हैं.
-आप लोगों से कटने लगे हैं.
-आप खुद से नफरत करते हैं और अपने आप को खत्म कर लेना चाहते हैं.
-अगर आप इन बातों के अलावा गूगल पर खुदकुशी के तरीके सर्च करते हैं तो आपको तुरंत मदद लेनी चाहिए.''
कैसे होगा मानसिक रोगी का इलाज
सायकाइट्रिस्ट या मनोचिकित्सक के पास जाने के लिए 'पागल' होने की ज़रूरत नहीं होती. न ही सायकाइट्रिस्ट के पास जाने से आप 'पागल' कहलाएंगे. हेल्थ और बीमारियों को इस नज़रिए से भी देखना शुरू करिए, क्योंकि दिमाग भी आपका है और शरीर भी आपका. आपका इलाज सिर्फ थेरेपी या काउंसलिंग से होगा या फिर दवाइयों की ज़रूरत भी पड़ेगी, इसका फैसला डॉक्टर करेगा. अगर बीमारियां गंभीर हैं, मसलन किसी को अजीबों-गरीब आवाज़ें सुनाई पड़ रही हैं.
वह कुछ ऐसा देख या सुन रहा है जो दूसरे नहीं, या अगर कोई खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है तो ऐसे में परिवार और दोस्तों की ज़िम्मेदारी है कि वे उसे डॉक्टर के पास ले जाएं क्योंकि ऐसी हालत में मरीज कभी खुद स्वीकार नहीं करेगा कि वह बीमार है. इसे दवाइयों, थेरेपी और लाइफस्टाइल में बदलाव लाकर बेहतर किया जा सकता है. जब मरीज पर दवाइयों का असर न हो रहा हो. अगर कोई अपनी जान लेने पर तुला है और उसे तुरंत काबू में लाना पड़े, तब शॉक थेरेपी ज़रूरत भी पड़ सकती है.
मानसिक स्वास्थ्य सेवा विधेयक 2016
आपको बता दें कि कुछ दिनों पहले ही लोकसभा में मेंटल हेल्थकेयर बिल-2016 पास हुआ, जो मानसिक बीमारियों से पीड़ित लोगों को सुरक्षा और इलाज का अधिकार देता है. यह कानून अपने आप में काफी प्रोग्रेसिव है, जो मरीजों को सशक्त बनाता है. बिल के प्रावधानों के मुताबिक, अब मानसिक बीमारियों को भी मेडिकल इंश्योरेस में कवर किया जाएगा. कोई भी स्वस्थ व्यक्ति अपना नॉमिनी चुन सकता है, जो मानसिक तकलीफ़ की हालत में उसकी देखभाल करेगा.
गंभीर मानसिक परेशानी से गुज़र रहे व्यक्ति को परिवार से दूर या अलग-थलग नहीं किया जा सकेगा. न ही उसके साथ किसी तरह की ज़बरदस्ती की जा सकेगी. सबसे ज़रूरी बात. अब खुदकुशी की कोशिश को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया गया है. यानी अपनी ज़िंदगी ख़त्म करने की कोशिश करने वालों को जेल नहीं भेजा जाएगा बल्कि उन्हें डॉक्टरी मदद दिलाई जाएगी.
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