नई दिल्ली। सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से संबंधित सहायक विधेयकों को सोमवार को संसद में पेश कर दिया। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी के सभी सहायक चारों विधेयकों को पेश किया। इन विधेयकों में सी-जीएसटी, आई-जीएसटी, यूटी-जीएसटी तथा मुआवजा कानून को लोकसभा में रखा गया। इस पर 28 मार्च यानी कल चर्चा हो सकती है। इसके अलावा विभिन्न उपकरों को समाप्त करने के लिए उत्पाद एवं सीमा शुल्क कानून में संशोधनों तथा नई जीएसटी व्यवस्था के तहत निर्यात एवं आयात के बिल देने संबंधित संशोधन भी सदन में रखे जा सकते हैं। इसके लिए देश के सभी राज्यों और केंद्र में व्यापक सहमति, ट्रांसपेरेंसी के साथ फैसला करने की व्यवस्था और नई कर प्रणाली से राज्यों को होने वाले नुकसान की केंद्र सरकार द्वारा भरपाई करने की गारंटी के बाद यह फैसला वाकई टैक्स व्यवस्था के लिए अब तक का सबसे बड़ा आर्थिक फैसला होगा।
सूत्रों ने कहा कि सरकार चाहती है कि जीएसटी से संबंधित विधेयक लोकसभा में 29 मार्च या अधिक से अधिक 30 मार्च तक पारित हो जाए। इसके बाद इन विधेयकों को राज्यसभा में रखा जाएगा। इससे सरकार को राज्यसभा में किसी तरह के संशोधन को लोकसभा में लाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा। लोकसभा इन संशोधनों को या तो खारिज कर सकती है या स्वीकार कर सकती है। संसद का मौजूदा सत्र 12 अप्रैल को समाप्त हो रहा है।
जीएसटी लागू होने के बाद
जीएसटी राज्यों के स्थानीय और केंद्र के करों को एक में समाहित कर देगा। सभी सामान और सेवाओं पर एक कर वसूला जाएगा। मान लें कि जीएसटी की दर 18 फीसदी है तो केंद्रीय जीएसटी और राज्य जीएसटी में 9-9 फीसदी का बंटवारा होगा। हालांकि बिल पारित होने के बाद भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। यथा-
- सर्विस सेक्टर इसका विरोध कर सकता है, क्योंकि उन्हें केंद्र के साथ हर राज्य में पंजीकरण
कराना होगा। इस तरह हर बिजनेस को अखिल भारतीय स्तर पर 60 रजिस्ट्रेशन कराने होंगे, जबकि इस वक्त सिर्फ एक रजिस्टे्रशन से काम चल जाता है। इससे उनकी लागत बढ़ जाएगी।
- रिटेल सेक्टर इसका विरोध कर सकता है, क्योंकि उनके टैक्स में बढ़ोतरी होगी और उन्हें राज्यों के साथ केंद्र सरकार के नियमों का पालन भी करना होगा।
- दोहरे नियंत्रण से बिजनेसमैन को प्रताडि़त करने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।
- जीएसटी नेटवर्क शुरुआती दौर में कुछ ऑपरेशनल परेशानियां बढ़ा सकता है।
- जीएसटी लागू होने के बाद विनिर्मित वस्तुओं पर भी समान दर से कर लगेगा, जो वर्तमान से सस्ता होगा।
जीएसटी के फायदे
- कई स्तर पर लगने वाले टैक्स खत्म होंगे
- भारत एक बाजार का रूप ले लेगा
- निर्माताओं पर टैक्स का बोझ कम होगा तो इससे वे अपना व्यापार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा प्रतियोगी रूप से बढ़ा पाएंगे
- सामान और सेवाओं पर एक दर से टैक्सों की वसूली को लेकर चल रहे विवादों में कमी आएगी
- विदेशी निवेशकों में भारत की छवि सुधरेगी और यहां कारोबार करना ज्यादा आसान हो जाएगा
राज्यों को क्षतिपूर्ति
- पुरानी कर प्रणाली से जीएसटी में आने पर राज्य सरकारें अपनी क्षतिपूर्ति के लिए कानूनी निश्चिंतता चाहती हैं, ताकि लंबे समय तक उनकी क्षतिपूर्ति हो सके।
- जीएसटी विधेयक के मूल विधेयक में पहले तीन साल तक सौ फीसदी क्षतिपूर्ति का प्रावधान है। इसके बाद अगले एक साल तक 75 फीसदी और इसके एक साल बाद 50 फीसदी का प्रस्ताव है।
- राज्यसभा की समिति ने पांच साल तक राज्यों को पूरी क्षतिपूर्ति देने की सिफारिश की है।
- राज्य पांच साल तक पूर्ण क्षतिपूर्ति के साथ संविधान में शाब्दिक मजबूती भी चाहते हैं।
- केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को पांच साल तक क्षतिपूर्ति देने के प्रस्ताव को स्वीकार किया है। साथ ही संविधान संशोधन में इसे शाब्दिक मजबूती देने की बात भी मान ली है।
आगे की राह
केंद्र और राज्यों द्वारा वसूले जाने वाले विभिन्न करों को मिला दिया जाएगा, जिसे अंतिम रूप में उपभोक्ता को ही वहन करना पड़ेगा। व्यापारियों और कंपनियों के लिए कर संग्रह एवं इसकी गणना आसान हो जाएगी।
कितनी होगी जीएसटी की दर
- विभिन्न सामान और सेवाओं पर कर की दर की अभी कोई घोषणा नहीं हुई है।
- मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन के नेतृत्व वाली समिति ने केंद्र से 15 से 15.5 फीसदी की तटस्थ दर की सिफारिश की है। ज्यादातर सामान और सभी सेवाओं पर लगभग 17 से 18 फीसदी का कर वसूला जाता है।
- जीएसटी में तटस्थ दर वह एकल दर है, जिस पर केंद्र और राज्य द्वारा कर वसूलने पर उन्हें किसी तरह का नफा अथवा नुकसान नहीं होगा।
- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) ने सामान को तीन श्रेणियों में रख कर कर लगाने का प्रस्ताव किया और मानक दरों को 23 से 25 फीसदी के बीच रखने की सिफारिश की है। इसमें बहुमूल्य धातुओं पर विशेष दर, कुछ आवश्यक सामानों पर निम्न मध्यम दर और ज्यादातर सामानों पर मानक दरों का प्रस्ताव है।
- एनआईपीएफपी ने एकल जीएसटी के तहत सभी सामान पर एक दर लागू होने की स्थिति में 18 से 19 फीसदी का कर लगाने का प्रस्ताव किया।
दायरे में क्या नहीं
- पेट्रोलियम उत्पाद
- पंचायत/नगरपालिका/जिला परिषद द्वारा वसूले जाना वाला एंटरटेनमेंट और एम्यूजमेंट टैक्स
- एल्कोहल/शराब पर टैक्स
- स्टाम्प ड्यूटी, कस्टम ड्यूटी
- बिजली की खपत और बिक्री पर टैक्स
नकारात्मक पक्ष
- सेवाओं पर टैक्स 15 से बढक़र 18 फीसदी हो जाएगा
- रिटेल पर टैक्स लगभग दोगुना हो जाएगा
- हर बिजनेस पर केंद्र और राज्य के टैक्स का दोहरा नियंत्रण होगा, जिससे बिजनेस की अनुपालन लागत बढ़ जाएगी
- टैक्स से जुड़े सारे क्रेडिट जीएसटी नेटवर्क से ऑनलाइन कनेक्टिविटी के बाद ही हासिल हो पाएंगे। इससे छोटे बिजनेसमैन को सिस्टम का इस्तेमाल करने में परेशानी हो सकती है
राह आसान नहीं
- राज्यसभा में पास कराने के बाद उसे आधे राज्यों की विधानसभाओं में पारित कराना होगा।
- अभी सभी राज्यों ने केंद्र सरकार के पक्ष में सहमति नहीं दी है।
सूत्रों ने कहा कि सरकार चाहती है कि जीएसटी से संबंधित विधेयक लोकसभा में 29 मार्च या अधिक से अधिक 30 मार्च तक पारित हो जाए। इसके बाद इन विधेयकों को राज्यसभा में रखा जाएगा। इससे सरकार को राज्यसभा में किसी तरह के संशोधन को लोकसभा में लाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा। लोकसभा इन संशोधनों को या तो खारिज कर सकती है या स्वीकार कर सकती है। संसद का मौजूदा सत्र 12 अप्रैल को समाप्त हो रहा है।
जीएसटी लागू होने के बाद
जीएसटी राज्यों के स्थानीय और केंद्र के करों को एक में समाहित कर देगा। सभी सामान और सेवाओं पर एक कर वसूला जाएगा। मान लें कि जीएसटी की दर 18 फीसदी है तो केंद्रीय जीएसटी और राज्य जीएसटी में 9-9 फीसदी का बंटवारा होगा। हालांकि बिल पारित होने के बाद भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। यथा-
- सर्विस सेक्टर इसका विरोध कर सकता है, क्योंकि उन्हें केंद्र के साथ हर राज्य में पंजीकरण
कराना होगा। इस तरह हर बिजनेस को अखिल भारतीय स्तर पर 60 रजिस्ट्रेशन कराने होंगे, जबकि इस वक्त सिर्फ एक रजिस्टे्रशन से काम चल जाता है। इससे उनकी लागत बढ़ जाएगी।
- रिटेल सेक्टर इसका विरोध कर सकता है, क्योंकि उनके टैक्स में बढ़ोतरी होगी और उन्हें राज्यों के साथ केंद्र सरकार के नियमों का पालन भी करना होगा।
- दोहरे नियंत्रण से बिजनेसमैन को प्रताडि़त करने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।
- जीएसटी नेटवर्क शुरुआती दौर में कुछ ऑपरेशनल परेशानियां बढ़ा सकता है।
- जीएसटी लागू होने के बाद विनिर्मित वस्तुओं पर भी समान दर से कर लगेगा, जो वर्तमान से सस्ता होगा।
जीएसटी के फायदे
- कई स्तर पर लगने वाले टैक्स खत्म होंगे
- भारत एक बाजार का रूप ले लेगा
- निर्माताओं पर टैक्स का बोझ कम होगा तो इससे वे अपना व्यापार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा प्रतियोगी रूप से बढ़ा पाएंगे
- सामान और सेवाओं पर एक दर से टैक्सों की वसूली को लेकर चल रहे विवादों में कमी आएगी
- विदेशी निवेशकों में भारत की छवि सुधरेगी और यहां कारोबार करना ज्यादा आसान हो जाएगा
राज्यों को क्षतिपूर्ति
- पुरानी कर प्रणाली से जीएसटी में आने पर राज्य सरकारें अपनी क्षतिपूर्ति के लिए कानूनी निश्चिंतता चाहती हैं, ताकि लंबे समय तक उनकी क्षतिपूर्ति हो सके।
- जीएसटी विधेयक के मूल विधेयक में पहले तीन साल तक सौ फीसदी क्षतिपूर्ति का प्रावधान है। इसके बाद अगले एक साल तक 75 फीसदी और इसके एक साल बाद 50 फीसदी का प्रस्ताव है।
- राज्यसभा की समिति ने पांच साल तक राज्यों को पूरी क्षतिपूर्ति देने की सिफारिश की है।
- राज्य पांच साल तक पूर्ण क्षतिपूर्ति के साथ संविधान में शाब्दिक मजबूती भी चाहते हैं।
- केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को पांच साल तक क्षतिपूर्ति देने के प्रस्ताव को स्वीकार किया है। साथ ही संविधान संशोधन में इसे शाब्दिक मजबूती देने की बात भी मान ली है।
आगे की राह
केंद्र और राज्यों द्वारा वसूले जाने वाले विभिन्न करों को मिला दिया जाएगा, जिसे अंतिम रूप में उपभोक्ता को ही वहन करना पड़ेगा। व्यापारियों और कंपनियों के लिए कर संग्रह एवं इसकी गणना आसान हो जाएगी।
कितनी होगी जीएसटी की दर
- विभिन्न सामान और सेवाओं पर कर की दर की अभी कोई घोषणा नहीं हुई है।
- मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन के नेतृत्व वाली समिति ने केंद्र से 15 से 15.5 फीसदी की तटस्थ दर की सिफारिश की है। ज्यादातर सामान और सभी सेवाओं पर लगभग 17 से 18 फीसदी का कर वसूला जाता है।
- जीएसटी में तटस्थ दर वह एकल दर है, जिस पर केंद्र और राज्य द्वारा कर वसूलने पर उन्हें किसी तरह का नफा अथवा नुकसान नहीं होगा।
- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) ने सामान को तीन श्रेणियों में रख कर कर लगाने का प्रस्ताव किया और मानक दरों को 23 से 25 फीसदी के बीच रखने की सिफारिश की है। इसमें बहुमूल्य धातुओं पर विशेष दर, कुछ आवश्यक सामानों पर निम्न मध्यम दर और ज्यादातर सामानों पर मानक दरों का प्रस्ताव है।
- एनआईपीएफपी ने एकल जीएसटी के तहत सभी सामान पर एक दर लागू होने की स्थिति में 18 से 19 फीसदी का कर लगाने का प्रस्ताव किया।
दायरे में क्या नहीं
- पेट्रोलियम उत्पाद
- पंचायत/नगरपालिका/जिला परिषद द्वारा वसूले जाना वाला एंटरटेनमेंट और एम्यूजमेंट टैक्स
- एल्कोहल/शराब पर टैक्स
- स्टाम्प ड्यूटी, कस्टम ड्यूटी
- बिजली की खपत और बिक्री पर टैक्स
नकारात्मक पक्ष
- सेवाओं पर टैक्स 15 से बढक़र 18 फीसदी हो जाएगा
- रिटेल पर टैक्स लगभग दोगुना हो जाएगा
- हर बिजनेस पर केंद्र और राज्य के टैक्स का दोहरा नियंत्रण होगा, जिससे बिजनेस की अनुपालन लागत बढ़ जाएगी
- टैक्स से जुड़े सारे क्रेडिट जीएसटी नेटवर्क से ऑनलाइन कनेक्टिविटी के बाद ही हासिल हो पाएंगे। इससे छोटे बिजनेसमैन को सिस्टम का इस्तेमाल करने में परेशानी हो सकती है
राह आसान नहीं
- राज्यसभा में पास कराने के बाद उसे आधे राज्यों की विधानसभाओं में पारित कराना होगा।
- अभी सभी राज्यों ने केंद्र सरकार के पक्ष में सहमति नहीं दी है।
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