FILM REVIEW: फिल्म देखो तो जानोगे, क्यों है 'आरा की अनारकली' देसी तंदूर - JBP AWAAZ

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Friday 24 March 2017

FILM REVIEW: फिल्म देखो तो जानोगे, क्यों है 'आरा की अनारकली' देसी तंदूर

कास्ट:  स्वरा भास्कर, पंकज त्रिपाठी, संजय मिश्रा, इश्तियाक खान 
लेखक/ निर्देशक- अविनाश दास
स्टार - 4
फिल्म की शुरुआत में शायद आपको लग सकता है कि आप किसी सिनेमा हॉल में नहीं बल्कि किसी लोकल मेले का नजारा देख रहे हैं। मेले की आवाज, रंगीन लाइट और स्टेज पर देसी कलाकार का रंगीन नाच। 
फिल्म रंगीन नाच दिखाने वाली कलाकार की बेरंग जिन्दगी की कहानी है।  फिल्म एक औरत की मर्जी की बता करता है। एक सीन में अनारकली कहती है, 'मैं खुद को कोई सती सावित्री नहीं कह रही। बंद कमरे की बात अलग है, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि भरी महफील में हमें नंगा कर दिया जाए।' 
फिल्म में ना ही कोई हीरो हीरोइन की लव स्टोरी है ना ही कोई रोमांटिक गाना है। कुल मिलाकर फिल्म डांसिग अरांउड द ट्री टाइप की फिल्म नहीं है। यह एक औरत के जीवन के सच और संघर्ष की कहानी है। 
फिल्म में दिखाया गया है कि अनारकली में नॉटीनेस है, वो स्टेज पर डांस करते वक्त लोगों को अपनी अदाओं से खूब बहलाती भी है। सड़क पर चलते समय उसमें एक अलग ही तेवर है। लेकिन जब कोई उसे जबरन अपनी संपत्ति समझता है तो उसके लिए वो अंगारा भी बन जाती है। जी हां, देसी तंदूर, अंग्रेजी में ओवन।
कई लोगों ने देसी तंदूर वाली लाइन पर आपत्ति भी जताई थी। मेरे ख्याल से उन लोगों को यह फिल्म एक बार जरूर देखनी चाहिए। किसी सच्चाई को दिखाने के लिए बिना कोई पर्दा डाले चीजें दिखानी पड़ती है, फिल्म के निर्देशक ने ठीक वही काम किया है।  फिल्म देखने के बाद पता चलेगा कि अनारकली सच में तंदूर है... एक ऐसी तंदूर जो बताती है, 'मेरे से दूर रहना वरना जल जाओगे।
'पिंक के 'ना' से थोड़ा विस्तार लिए हुए है अनारकली का 'ना' 
पिंक फिल्म में भी एक स्त्री की मर्जी की बात कही गई थी। फिल्म में कहा गया था कि 'ना' मतलब 'ना'। मगर यहां कहे गए 'ना' का विस्तार उस 'ना' से थोड़ा अलग है। यहां एक ऐसी औरत के 'ना' की बात कही गई है, जिसके लिए समाज यह धारणा ही बना लेता है कि वो आसानी से आपके लिए उपलब्ध है, समाज के हिसाब से वो एक नाचने गाने वाली बाजारू औरत है। जबकि फिल्म में अनारकली अपना विरोध जताकर और उस विरोध की लड़ाई लड़कर यह बताती है, 'जब तक मर्जी नहीं तब तक उसे कोई छू भी नहीं सकता।' 
फिल्म के क्लाइमेक्स में अनारकली काफी दमदार है। अनाकरली का बदला और अंत में उसका स्टेज शो, आपके झकझोर देने का काम करेगा। अनारकली ऑफ आरा एक म्यूजिकल फिल्म है और अंत में म्यूजिकल तरीके से ही अनाकरली के बदले के सीन को भी दर्शाया गया है। 
अनारकली के उस स्टेज परफॉर्मेंस में एक गजब का तेवर दिखाई देता है। उसके चेहरे पर एक औरत का विद्रोह दिखता है। उसका नाच एक तांडव नाच के रूप दर्शाया गया है, जिसमें वो कहती है, 'वीसी साहब अगली बार से चाहे वो बाजारू औरत हो या उससे थोड़ी कम या फिर आपकी बीवी ही क्यों ना हो उसकी मर्जी के बिना हाथ मत लगाइएगा'
जबरदस्त अभिनय का जादू
जहां तक अभिनय की बता है तो इसे स्वरा की अब तक की बेस्ट परफॉर्मेंस कहना गलत नहीं होगा। उन्होंने आरा की देसी गायिका के किरदार को बखूबी जिया है और लोगों के सामने एक देसी गायिका की इमेज गढ़ने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। फिल्म में स्वरा के ठुमके तो दीवाना बनाएंगे ही लेकिन कई बार पंकज त्रिपाठ भी आपको झूमने पर मजबूर कर देंगे। उनका बॉडी लैंग्वेज भी कमाल का लगा है। पंकज फिल्म में अपने अंदाज से हंसाने का भी काम करे रहे हैं। संजय मिश्रा को अभिनय करने की जरूरत पड़ी ही नहीं है। उनका अभिनय बिलकुल वास्तविक लगता है। फिल्म आंखो देखी के जैसे ही इस फिल्म में भी उन्होंने अपने अभिनय के जरिए फिल्म में जान डालने का काम किया है।
लो बजट का अलग मजा
एक लो बजट की फिल्म का एक सकरात्मक पहलू ही देखने को मिला है। फिल्म काफी वास्तविक लगी है। आपको फिल्म देखने पर लगेगा कि आप बिहार के किसी शहर की ही यात्रा कर रहे हैं। 
अविनाश दास की पहली फिल्म के रूप में यह फिल्म काबिल ए तारिफ है। जिसमें मसाला फिल्मों की चकाचौंध नहीं है, मगर एक देसीपना है। हालांकि फिल्म के डायलॉग्स कई जगहों पर और भी प्रभावशाली हो सकते थे। लेकिन, इतने जबदस्त गानों के आगे उसकी कमी कुछ खास नहीं खलती है।
अनारकली के आइटम सॉन्ग में हैं 'विरोध के बोल'
म्यूजिक फिल्म में सबसे ज्यादा प्रभावशाली पार्ट है। इसके सभी गानें आपको झूमने पर मजबूर कर देंगे।  'लैला मैं लैला' गाने से धूम मचा चुकी पावनी पांडे अब अनारकली के गीत 'सा रा रा रा' से धमाल मचा रही हैं। रवींद्र रंधावा के लिखे इस गीत को सुनकर आप झूमेंगे भी साथ ही इस गानें में कई प्रतिरोध के स्वर भी सुनाई देंगे। इस गाने के बोल जैसे, 'अब तो गुलमिया के ना ना ना', 'तोहरी पत्नी, धर्मपत्नी, हम सिलौड़ी के चटनी जब मन किया उंगली लिए निकाल, हम का है तुमरे बाप का माल...' अनारकली के विरोध के बोल हैं।'
आप अगर टिपिकल आइटम सॉन्ग की तलाश इस फिल्म में करें, तो आपको थोड़ा निराश भी होना पड़ सकता है। शायद आपको इन गानों में चिकनी चमेली, चिपकाले संइया फेविकॉल से वाला फ्लेवर ना मिलें। इसका एक बड़ा कारण फिल्म में आइटम सॉन्ग के जरिए भी कुछ वास्तविकता दिखाने की कोशिश है। फिल्म के दो इमोशनल सॉन्ग आपको भावुक कर सकते हैं। सोनू निगम की आवाज में गाया गया गीत 'मन बेकैद हुआ' सीन को काफी प्रभावशाली बनाता है। 
फिल्म का कॉस्ट्यूम भी काफी आकर्षक है। कॉस्ट्यूम आर्टिस्ट रूपा चौरसिया ने फिल्म में ना सिर्फ अनारकली बल्कि पंकज त्रिपाठी को भी आकर्षक लुक देने में अहम भूमिका निभाई है।
क्या है कहानी
अनारकली की मां भी देसी गायिका थी, जो एक शो के दौरान गोली का शिकार हो जाती है और मौके पर ही उनकी मौत हो जाती है। अनारकली अपनी मां की मौत के बाद यही पेशा अपनाती है। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि मां के जिंदा रहने पर वो स्कूल भी जाती है तो उससे डबल मीनिंग गानें की ही डिमांड की जाती है, इस वजह से वो कभी अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान नहीं दे सकी।
अनारकली अपने पेशे से खुश है। उसे दशहरे के मौके पर पुलिस लोगों के एक कार्यक्रम में नाचने के लिए बुलाया जाता है, वहां विश्वविद्यालय के वीसी मुख्य अतिथि रहते हैं।  वीसी की नजर काफी समय से अनारकली पर रहती है। कार्यक्रम में शराब पीने के बाद वीसी अपना होश खो बैठता है और नशे में सबके सामने अनारकली के साथ बदसलूकी कर बैठता है।
इसके बाद वीसी इस मुद्दे को दबाने के लिए अनारकली को खरीदने की कोशिश करता है और उसका इस्तेमाल करना चाहता है। बस यही से शुरू होती है अनारकली की लड़ाई की कहानी। एक तरफ अनारकली के वजूद की लड़ाई तो दूसरी तरफ वीसी के रूप में एक पुरुष का अहंकार। अनारकली इन सबसे बचकर दिल्ली भी जाती है और एक म्यूजिक कंपनी में उसे गाने का मौका भी मिल जाता है, लेकिन वीसी को इस बात का पता चल जाता है और वहां भी उसका जीना हराम कर दिया जाता है।  अंत में अनारकली परिस्थिति से भागने की जगह उससे लड़ने का संकल्प लेती है और चल पड़ती है आरा की ओर। इसके बाद अनारकली सबके सामने वीसी की असलियत लाती है।

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