फाइल फोटो (Image Source- Gettyimages)
नई दिल्ली:
चर्च से मिले तलाक को भारतीय कानून से वैधता नहीं मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में दायरयाचिका को खारिज कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इंडियन डाइवोर्स एक्ट के तहत मान्यता प्राप्त अदालतें ही तलाक दे सकती है। चर्च कोर्ट से दिये जाने वाले तलाक की डिग्री की कोई कानूनी मान्यता नहीं है।
कर्नाटक के कैथोलिक एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष क्लेरेंस पाइस ने याचिका दायर कर मांग की थी कि चर्च से मिले तलाक पर सिविल कोर्ट की मुहर लगना जरूरी नहीं हो। याचिककर्ता का कहना है कि इस्लाम में तीन तलाक को मान्यता है तो क्रिश्चियन लॉ के तहत किए जाने वाले निर्णयों को भी वैध माना जाए।
याचिका के मुताबिक, चर्च से दिए जाने वाले तलाक की डिग्री के बाद कुछ लोगों ने जब दूसरी शादी कर ली तो उन पर बहुविवाह का मुकदमा दर्ज हो गया। याचिका में मांग की गयी थी कि सुप्रीम कोर्ट यह तय करे कि कैनन लॉ में चर्च से दी जा रही तलाक की डिग्री मान्य होगी और इस पर सिविल कोर्ट से तलाक की मुहर जरूरी नहीं होगी।
सरकार ने याचिका का किया था विरोध
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकार ने याचिका का विरोध किया था। सरकार का कहना था कि याचिककर्ता की मांग स्वीकार नहीं की जा सकती क्योंकि इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट, 1872 और तलाक अधिनियम, 1869 पहले से लागू है। ऐसे में तलाक की इजाजत चर्च कोर्ट से नहीं दी जा सकती।
ट्रिपल तलाक का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश अपने आप में इसलिए भी अहम हैं क्योंकि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट सरकार को यूनिफार्म सिविल कोड को लेकर अपना रुख साफ करने को कह चुका है, वहीं मुस्लिम समाज में प्रचलित ट्रिपल तलाक को लेकर कई याचिकाओं पर कोर्ट में सुनवाई लंबित है।
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