महाभारत……इस युद्ध के बारे में कहा जाता है कि यह एक धर्मयुद्ध था। इस लड़ाई में तमाम ऐसा पात्र थें, जो धर्म और संबंधों को लेकर दुविधा में फंस गए थें। खुद अर्जुन भी अपने कौरव भाइयों को मरता देख एक समय विचलित हो गए थें, तब श्री कृष्ण ने उन्हें गीता का ज्ञान दिया था। इस युद्ध में ज्यादातर लोगों ने कौरवों का साथ भी दिया था, लेकिन खुद कौरवों का ही एक भाई था। जिसने धर्म और सत्य का मार्ग चुनते हुए ना सिर्फ पाण्डवों का साथ दिया ब्ल्कि वह महाभारत के इस लड़ाई में एक मात्र जीवित बचा कौरव था।
1.कौरवों का भाई युयुत्सु
कौरवों का वो भाई था युयुत्सु कहते हैं कि इसके पाण्डव समूह में शामिल होने से पाण्डवों का पक्ष मजबूत हो गया था। बात अगर युयुत्सु के जन्म की करें, तो उससे पहले पांडवों के जन्म की कहानी जानना भी जरुरी हो जाता है। कौरवों के बारे में कहा जाता है कि उनका जन्म प्राकृतिक नहीं था। वे सभी 100 कौरव गांधारी के गर्भ से उत्पन्न हुए मांस के लोथड़े से पैदा हुए थें।
2.101 नहीं धृतराष्ट्र के 102 संतान थे
उन 100 कौरवों में से उनकी एक बहन भी थी। इस तरह धृतराष्ट्र की कुल 101 संतानों का जिक्र मिलता है। लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि धृतराष्ट्र की 101 संतानों के नहीं बल्कि 102 संतानों के पिता थें और वो 102वीं संतान थें युयुत्सु। इनका जन्म भी कौरवों के जन्म वाले दिन ही हुआ था।
3.दासी पुत्र थें युयुत्सु
दरअसल युयुत्सु एक दासीपुत्र थें। कहा जाता है कि कई सालों तक जब गांधारी से संतान प्राप्ति नहीं हुई, तब धृटराष्ट्र को संतानविहीनता का डर सतान लगा। संतान उत्पत्ति की चाह में धृटराष्ट्र ने अपने महल की एक दासी से संबंध बना लिया। जिससे युयुत्सु का जन्म हुआ।
4.कौरवों से दूर रहते थें युयुत्सु
युयुत्सु को बचपन से ही अपने कौरव भाईयों का कार्य पसंद नहीं था, जिस कारण वो उनसे दूर ही रहा करते थें। धीरे-धीरे वक्त गुजरता गया और जब कुरुक्षेत्र युद्ध का वक्त आया तो युयुत्सु ने कौरवों के बजाए धर्म और सत्य का रास्त चुनते हुए पांडवों का साथ दिया।
5.60,000 सैनिकों को अकेले पराजित किया था
युयुत्सु के बारे में कहा जाता है कि वे इतने बलशाली थें कि एक साथ 60,000 सैनिकों को पराजित कर दिया था। महाभारत के इस युद्ध में युयुत्सु के अलावा कोई और कौरव जिंदा नहीं बचा था। इस युद्ध के बाद युयुत्सु अभिमन्यु पुत्र राजा परिक्षित के सलाहकार का पद भी संभाला। जिनकी सलाह के अनुसार ही परिक्षित अपने राज-काज का काम संभाला करते थें।
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