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Saturday, 30 September 2017

रावण वध ही नहीं, इस कारण से भी मनाया जाता है दशहरा

दशहरा का इतिहास वास्तव में सबसे पुराना है। धार्मिक साहित्य को अगर देखें तो इस पर्व के संबंध में कई कथाएं मिलती हैं। साधारण लोग यही जानते हैं कि इस दिन प्रभु श्री राम चंद्र जी ने दशानन लंकापति रावण का वध किया था, यानी सत्य का दामन पकड़े प्रभु राम ने असत्य व पापकर्मा रावण का वध कर विजय प्राप्त की। 

एक मत के अनुसार इस दिन भगवती मां दुर्गा ने साक्षात् प्रकट होकर महिषासुर नामक असुर का वध किया था। महिषासुर के आतंक से सारी जनता दुखी थी। इस सृष्टि को महिषासुर के आतंक से मां भगवती दुर्गा ने मुक्ति दिलाई थी। इस अवसर पर सभी देवी-देवताओं ने मां दुर्गा की स्तुति की। ढोल-नगाड़े बजाकर आकाश से पुष्प वर्षा की। उस समय समस्त संसार का वातावरण एक उत्सव में परिवर्तित हो गया था। महिषासुर ने तपोबल से यह वरदान प्राप्त कर लिया था कि वह किसी पुरुष, देवता, मानव, पक्षी, पशु के हाथों न मारा जाए और उसकी जब भी मृत्यु हो वह किसी कन्या के हाथ से हो। इसीलिए देवी-देवताओं एवं समाज की रक्षा हेतु मां भगवती ने स्वयं प्रकट होकर अत्याचार रूपी महिषासुर का वध किया। इसीलिए सभी देवी-देवताओं ने मां भगवती को महिषासुर मर्दिनी के नाम से पुकार कर उनकी स्तुति की।

मां दुर्गा के नवरात्रों के समापन उपरांत विजय दशमी को ही इस उत्सव का समापन माना जाता है। पुरातन काल से ही योद्धा व बली देवी से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए नवरात्र काल में शक्ति पूजन करते आ रहे हैं। आश्विन नवरात्रों में सिद्धि प्राप्ति में प्रकृति भी सहायक सिद्ध होती है। स्वयं भगवान राम ने नवरात्रों के 9 दिन शक्ति पूजा कर दशानन रावण को मारने का सामर्थ्य प्राप्त किया था। 

मां दुर्गा शक्ति रूपा हैं। इस दिन उनके वीर रूप की पूजा की जाती है। इसलिए इसको दुर्गा पूजा के रूप में भी जाना जाता है। प्राचीनकाल से ही इस अवसर पर शस्त्र पूजा करने का भी विधान है। इसी कारण इस अवसर को वीरता के पर्व विजय दशमी का नाम दिया गया है। यह उत्सव दीपावली से 20 दिन पूर्व मनाया जाता है। इसको नेकी की बदी पर जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है। दशहरा शब्द का अर्थ है 10 सिर वाला। लंका के राजा रावण के 10 सिर थे। वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण एक वीर, धर्मात्मा, ज्ञानी, नीति तथा राजनीति शास्त्र रणनीति में निपुण, वैज्ञानिक, ज्योतिषाचार्य, कुशल सेनापति, वास्तु कला के मर्यज्ञ होने के साथ-साथ ब्रह्मज्ञानी और बहुत ही आलौकिक विधाओं का ज्ञाता था। इसी के साथ ही वह इंद्रजाल, तंत्र सम्मोहन और अनेक मायावी विधाओं में भी निपुण था। रावण जैसा विद्वान एवं तेजस्वी शायद ही कोई उस युग में हुआ हो। उसकी एक गलती ने उसके अपने राक्षस परिवार का विनाश कर डाला। सोने की लंका भी हनुमान जी द्वारा क्षण में भस्म कर दी गई। उसका अहं उसका तथा उसके परिवार के विनाश का कारण बना। जिसके तेज से देवता भी कांपते थे, वही वनवासी व सदाचारी राम के हाथों मृत्यु का ग्रास बना। पुलस्त्य जैसे महामुनि का वंशज शिव भक्त रावण अपने परिवार सहित दुर्गति को प्राप्त हुआ।

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